टीम बारा की एक अहम बैठक घूरपुर बाजार स्थित होटल ग्रेण्ड में संपन्न
समाज में भाषाई मर्यादा का बढ़ता उल्लंघन गम्भीर चिंतन का विषय, लोकतंत्र के लिए खतरा...?
इसी प्रमुख विन्दु पर प्रकाश चंद्र शुक्ल (प्रचंड) ने कहा कि भाषा साहित्य की हो, धर्म या राजनीति की, वह मनुष्य का संस्कार होती है। भाषा सीखना, लिखना, पढ़ना , बोलना एक पक्ष है, लेकिन उसका व्यवहार संस्कार का सौंदर्य लगे, संवेदन का मर्म लगे और समाज या देश की पहचान बने यह भी जरूरी है। राष्ट्र केवल अर्थशास्त्र से नहीं बनता, न राजनीति ही उसे संपूर्ण राष्ट्र बनाती है, एक संपूर्ण राष्ट्र बनता है सामाजिक चेतना से, सभ्यता के उत्कर्ष से, जीवन के प्रति श्रेष्ठताबोध से! भाषा मनुष्य की चेतना का निर्माण करती है। वह मानवीय स्पंदन है, सौंदर्य है, संवेदन है और वे तमाम जीवन-व्यवहार भाषा से प्रकट होते हैं, जो मनुष्य अपने में जीता है।
उक्त कार्यक्रम में रमाकांत यादव ने कहा कि एक सभ्य लोकतंत्र, राजनीति के पक्ष-प्रतिपक्ष, समर्थन-विरोध या प्रकृति-संस्कृति का ही लोकतंत्र नहीं होता। वह भाषा का लोकतंत्र भी होता है। भाषा लोकतंत्र की वाणी भी है, व्यवहार भी, संस्कार भी। राजनीति केवल विषय ज्ञान नहीं और न राजनीतिशास्त्र में उच्चतम उपाधि-प्राप्त कर लेने से आती है।
इसी कड़ी में कार्यक्रम में मौजूद आनंद जायसवाल ने कहा कि जिस देश का समाज बहुधर्मी, बहुभाषी, बहु-जातीय, बहुक्षेत्रीय हो, वहां का संविधान हमारी देशज और सार्वभौमिक सामूहिकता का श्रेष्ठतम समाज हो। हमारे पूर्वजों ने इसी आधार पर समाज की रचना की इसे आगे बढ़ाने की हमारी नैतिक जिम्मेदारी है
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