बच्चों के लिए स्वीमिंग पूल बनी बेलन की धारा

 

अजय प्रताप सिंह

कोरांव/प्रयागराज (स्वतंत्र प्रयाग)बेलन की घाटी आज से नही प्राचीन काल से कोरांव क्षेत्र की संस्कृति को पुष्पित और पल्लवित करती रही है। इसी गोद मे खेले तमाम विभूतियों ने विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ी है। कई पीढियां आई और गईं मगर बेलन की ममतामयी गोद अपने बच्चों के लिए आज भी पूर्ववत ममता संजोए हुए है।


गर्मी के दिनों में शीतलता का माध्यम


गर्मी के दिनों में जब सूर्यदेव के प्रखर ताप से जीवजंतु परेशान हो उठते हैं तो ऐसे मुश्किल दिनों में बेलन की गोद मे ही उन्हें ठाँव मिलती है। पूर्व प्रधानमंत्री भारत सरकार विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भी अपने संस्मरण में मां बेलन की ममतामयी गोद का भावुक बखान किया है। वे बेलन की तलहटी से कुछ पत्थर के टुकड़े दिल्ली में अपने आवास पर संजोकर रखते थे। और कहते थे कि यही तो अपने हैं बाकी सब कुछ नहीं। उन्होंने अपने व्यक्तित्व के विस्तार में बेलन के निःस्वार्थ योगदान को अंतर्मन से स्वीकार किया है।


बेलन की गोद में बसी संस्कृति अतिप्राचीन


बेलन की गोद मे प्राचीन काल से ही स्थानीय संस्कृति पुष्पित और पल्लवित होती रही है। नदी के आसपास के क्षेत्रों में पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में यहां लगभग 5000 वर्ष पूर्व की संस्कृति के प्रमाण मिले हैं। धान की खेती का भी सबसे पुराना प्रमाण यहां के कोलडीहवा व मांडो गांव में मिला है। 


खनन माफियाओं के निशाने पर बेलन की तलहटी


मानव की खुदगर्जी और निर्ममता का क्रूर उदाहरण इससे बड़ा नही मिल सकता,कि जिस मां की गोद अनादि काल से ही अपने पाल्यों के लिए हमेशा प्रस्तुत रही है,आज उसे ही खोदने का काम किया जा रहा है। क्षेत्र के लोनमटी,अयोध्या,बरहुला,बांसघाट,सिपौआ आदि स्थानों पर इन खनन माफियाओं द्वारा व्यापक स्तर पर खनन कर मां की गोदी को छलनी किया जा रहा है। प्रशासन और पुलिस इस कुकृत्य में मौनसाक्षी बना हुआ है। 


कुल मिलाकर क्षेत्रीय जनमानस को बेलन के अस्तित्व के संरक्षण के लिए खुद आगे आना होगा अन्यथा एक लंबे अर्से से स्थानीय जनमानस को अमृतपान कराने वाली मां की गोद हमेशा हमेशा के लिए दूर चली जाएगी।

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