शासन प्रसाशन की उपेक्षा का शिकार है बाणासुर की तपोस्थली

 


भगवान राम ने वनगमन के समय की थी ऋषियों की पूजा


 



 


लालापुर/ प्रयागराज:(स्वतंत्र प्रयाग), प्रयागराज से दक्षिण पश्चिम की सीमा से सटे गांव बरहा कोटरा की पहाड़ी पर भगवान शिव का मंदिर है, इसे देवताओं की साधना स्थली माना जाता है। मान्यता है कि बाणासुर की माँ बरहा के नाम पर गांव का नाम बरहा कोटरा पड़ा।


पुरातत्व विभाग ने यहाँ एक बोर्ड लगाकर कोरम पूरा कर लिया,किसी भी अधिकारी ने इस ओर कभी भी ध्यान नहीं दिया। प्रख्यात शिव मंदिर के ध्वंसावशेष यहाँ पर बिखरे पड़े दिखाई देते हैं।



बाणासुर के दुर्ग के पास बने बाँध के ध्वंसावशेषों को पुरातत्व विभाग सिंधु घाटी की सभ्यता के समकालीन बताते हैं। ऐसी मान्यता है कि बाणासुर ने इस पहाड़ी पर तपस्या की थी। पहाड़ी पर आदिकाल के मानव निर्मित शैल चित्रो के साथ ही बौद्ध मूर्तियों के भग्नावशेष भी देखने योग्य हैं।


इस पौराणिक स्थल पर आज भी दो प्राकृतिक गुफाएं हैं, एक गुफा में पाँच अद्वितीय शिवलिंग विराजमान हैं। इस गुफा में शिवलिंग को स्पर्श करती अविरल जल धारा बहती रहती है जबकि दूसरी गुफा को बंद कर दिया गया है।



क्षेत्रीय लोगों ने बताया कि ऋषियन धाम में पाताल नरेश बाणासुर के अतिरिक्त तमाम ऋषियों ने तपस्या की थी, इसलिए भगवान राम वनवास के लिए चित्रकूट जाते समय यहाँ रुके थे और ऋषियों का आशीर्वाद लिया था। ऋषियन धाम में आज भी पुराने गौरव को दोहराते सात मंदिरो के अवशेष मौजूद हैं।


यहाँ शिव मंदिर, गणेश मंदिर, दुर्गा मंदिर, सूर्य मन्दिर में सात घोड़ों का रथ भी बना हुआ है गुफा के बाहर यक्ष की मूर्तियां बनी हुई हैं। मान्यता के अनुसार ऋषियन धाम में यक्ष गण सपरिवार आते थे। इसी तरह पीपल के पेड़ पर अजीब प्रकार की आकृतियां बनी हैं, जिन्हें क्षेत्र के ग्रामीण देवी देवताओं की आकृति मानते हैं।



दीपक पांडेय


 


 


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