कांग्रेस को राम के पास लाने के लिए इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के पदचिन्हों पर - प्रियंका गांधी 


प्रयागराज/लखनऊ(स्वतंत्र प्रयाग न्यूज) इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के पद चिन्हों पर चलकर प्रियंका गांधी कांग्रेस को राम के पास वापस ले जाना चाहती हैं। इसीलिए जब एक तरफ पार्टी के कई नेता अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की आधारशिला रखने वाले कार्यक्रम के मुहूर्त समय और आयोजन के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं, प्रियंका ने संघ परिवार के जय श्रीराम को जय सियाराम में बदलने की कोशिश शुरू कर दी है। प्रियंका उत्तर प्रदेश के सियासी रण में अयोध्या और राम की अहमियत समझती हैं। 



वह यूपीए सरकार वाली कांग्रेसी धर्मनिरपेक्षता को इंदिरा और राजीव वाली सर्वधर्म समभाव की सोच में बदलना चाहती हैं। उन्होंने जता दिया है कि इसके लिए उन्हें न राम से परहेज है न राम मंदिर से और न ही अयोध्या से। लेकिन वह संघ परिवार के आक्रामक नारे जय श्रीराम के उद्घोष की जगह सदियों से जन-जन में प्रचलित जय सियाराम की राम जोहार को कांग्रेस की पहचान बनाना चाहती हैं।


मंगलवार की सुबह यानी आधारशिला समारोह से ठीक एक दिन पहले प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्वीट किया- सरलता, साहस, संयम, त्याग, वचनबद्धता, दीनबंधु राम नाम का सार है। राम सबमें हैं, राम सबके साथ हैं। भगवान राम और माता सीता के संदेश और उनकी कृपा के साथ रामलला के मंदिर भूमिपूजन का कार्यक्रम राष्ट्रीय एकता, बंधुत्व और सांस्कृतिक समागम का अवसर बने।


अपने ट्वीट के साथ ही प्रियंका ने अपना वक्तव्य भी संलग्न किया जिसमें उन्होंने भारत ही नहीं दुनिया और पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति में रामायण के अमिट प्रभाव का जिक्र करते हुए भगवान राम और माता सीता की गाथा को हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक स्मृतियों का प्रकाशपुंज बताया। तुलसी के हरि अनंत हरि कथा अनंता को राम और रामायण के अनगिनत रूपों की अभिव्यक्ति बताया। 



जहां मंदिर आंदोलन के दौरान राम के योद्धा रूप का ही ज्यादा प्रचार हुआ वहीं प्रियंका ने राम के करुणामय रूप को भारतीय मानस में अमिट बताते हुए शबरी के राम, सुग्रीव के राम, वाल्मीकि और भास के राम का जिक्र किया है। राम सिर्फ उत्तर के ही नहीं बल्कि दक्षिण में कंबन और एषुत्तच्छन के भी राम हैं। राम संप्रदाय और मजहब की दीवारों से ऊपर हैं इसलिए कबीर के भी राम हैं तुलसीदास और रैदास के भी राम हैं। 


राम सबके दाता हैं और गांधी के रघुपति राघव राजाराम सबको सम्मति देने वाले हैं। वारिस अली शाह कहते हैं कि जो रब है वही राम है। आगे अपने बयान में प्रियंका ने राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त के राम को निर्बल का बल बताने महाप्राण निराला की कालजयी पंक्तियां वह एक और मन रहा राम का जो न थका, के जरिए राम को शक्ति की मौलिक कल्पना कहते हुए राम को साहस, संगम, संयम, सहयोगी रूप को बताते हुए कहती हैं कि राम सबके हैं। सबका कल्याण चाहते हैं इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। 


अपने वक्तव्य के आखिर में प्रियंका ने जय सियाराम कहकर अभिवादन किया है। जबकि मंदिर आंदोलन में संघ परिवार ने जय श्रीराम पर ज्यादा जोर दिया और उस उद्घोष के शोर में जय सियाराम कहीं खो गया। सियाराम कहकर प्रियंका ने राम के साथ सीता को भी प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया है।



दरअसल अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर कांग्रेस शुरू से ही उहापोह की शिकार रही है। इस विवाद की लंबी यात्रा में 23 दिसंबर 1949 की रात को राम लला की मूर्तियों के रखे जाने से लेकर 1986 में विवादित स्थल का ताला खुलवाने, फिर 1989 में शिलान्यास कराने और छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराए जाने के सभी अहम पड़ावों के दौरान देश में कांग्रेस की ही सरकार थी।


हालांकि मूर्तियां रखे जाने के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, गृह मंत्री सरदार पटेल, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत उस समय कोई कड़ा फैसला नहीं ले सके थे जिससे यह विवाद तूल ही न पकड़ता। उनकी मजबूरी थी कि 1947 में देश का बंटवारा हुआ था और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की आग ने हजारों लोगों के साथ महात्मा गांधी तक की जान ले ली थी। इसलिए स्वतंत्रता आंदोलन के इन तीनों कद्दावर नेताओं ने एक नया विवाद बचाने के लिए मामले को जस का तस छोड़ दिया। 


लेकिन 1980 में दोबारा सत्ता में धमाकेदार वापसी के बाद इंदिरा गांधी को अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के महत्व का अंदाज हो गया था। तब तक इस आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सीधे तौर पर नहीं उतरा था और इसकी कमान उन संत महात्माओं के हाथों में ही थी जो किसी संस्थागत धार्मिक या राजनीतिक नियंत्रण को नहीं मानते थे। 1983 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में संघ के प्रचारक दिनेश त्यागी और विजय कौशल महाराज के प्रयासों से राम मंदिर निर्माण को लेकर पहला बड़ा सम्मेलन बुलाया गया। जिसमें आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेसी नेता दाउदयाल खन्ना ने सक्रिय भागीदारी की।



कहा जाता है कि इस सम्मेलन को इंदिरा गांधी का आशीर्वाद प्राप्त था और खन्ना उनके निर्देश पर ही शामिल हुए थे। बकौल आचार्य विजय कौशल महाराज सम्मेलन में दाउदयाल खन्ना ने स्पष्ट रूप कहा था कि इंदिरा जी अयोध्या में श्री रामजन्म भूमि स्थल पर मंदिर निर्माण के पक्ष में है लेकिन कांग्रेस एक धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल है इसलिए पार्टी खुलकर इसका समर्थन नहीं कर सकती लेकिन कांग्रेसी व्यक्तिगत रूप से इसका समर्थन कर सकते हैं और इसीलिए इंदिरा गांधी के कहने पर दाउदयाल खन्ना सम्मेलन में आए थे। 


विजय कौशल महाराज बताते हैं कि सिर्फ खन्ना ही नहीं बल्कि देश भर के हजारों कांग्रेसी नेता राम मंदिर निर्माण के पक्ष में थे और इसका सबूत है कि जब 1984 में राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने तो उसके बाद विवादित स्थल का बंद ताला खुलवाया गया। विवादित परिसर में मूर्तियां रखे जाने के बाद से ही वहां स्थानीय अदालत के आदेश पर ताला लगा दिया गया था और एक पुजारी को भीतर जाकर पूजा अर्चना की इजाजत थी।


1985-86 में जब वीर बहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे तब तत्कालीन अयोध्या जिले की एक स्थानीय अदालत में एक वकील उमेश पांडे ने विवादित परिसर का ताला खोलने का प्रार्थना पत्र दिया। अदालत ने जिला प्रशासन और पुलिस से राय मांगी और उन्होंने इस पर सहमति दे दी। ताला खुलते ही यह मुद्दा गरम हो गया। तब तक राम मंदिर आंदोलन की कमान पूरी तरह संघ परिवार के हाथों में आ चुकी थी। 


इसके बावजूद विश्व हिंदू परिषद से अलग जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद महाराज जिन्हें इंदिरा गांधी के जमाने से ही कांग्रेस का समर्थक माना जाता रहा है, राम मंदिर को लेकर समानांतर आंदोलन भी चला रहे थे और मुकदमे में एक उच्च पक्षकार भी थे। 1989 में राजीव गांधी और प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने विवादित स्थल से बाहर राम मंदिर का शिलान्यास भी कराया, जिसमें विश्व हिंदू परिषद और राम जन्मभूमि आंदोलन के तमाम बड़े नेता शामिल हुए।


फैजाबाद के जाने-माने अखबार जनमोर्चा के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह अपनी किताब में लिखते हैं कि राजीव गांधी के समय विदेशी तकनीक से बाबरी मस्जिद के ढांचे को स्थानांतरित करके विवादित स्थल की भूमि मंदिर निर्माण के लिए हिंदू पक्ष को सौंपने के फार्मूले पर सहमति बन गई थी। शीतला सिंह के मुताबिक विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष और मंदिर आंदोलन के अगुआ अशोक सिंघल भी राजी हो गए थे। लेकिन तत्कालीन संघ नेतृत्व ने इसे नामंजूर कर दिया और सिंघल को भी पीछे हटना पड़ा।



लेकिन 1989 में राजीव गांधी की हार के बाद कांग्रेस की समस्या यह हो गई कि विश्वनाथ प्रताप सिंह और मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं ने उसके मुस्लिम जनाधार में सेंध लगा दी। अपने मुस्लिम जनाधार को पाने के लिए कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुलायम सिंह यादव की सरकार को तब अपना समर्थन उत्तर प्रदेश में 1990 में दिया जब अयोध्या में कारसेवकों पर चली गोली और उनकी मौत ने मुलायम सिंह यादव और उनकी सरकार को हिंदू विरोध का प्रतीक बना दिया था। 


कांग्रेस की यही गलती उत्तर प्रदेश में उसके पतन का सबसे बड़ा कारण बनी और मुस्लिम जनाधार जहां सपा के साथ चला गया वहीं सवर्ण हिंदुओं ने भाजपा को अपना लिया। हालांकि फिर नरसिंह राव सरकार के जमाने में न सिर्फ बाबरी मस्जिद गिरी बल्कि राव ने चारों शंकराचार्यों को एकजुट करके रामालाय ट्रस्ट के जरिए मंदिर निर्माण का रास्ता निकालना चाहा। 


लेकिन तब तक आंदोलन में देश भर के संत जुड़ चुके थे और भाजपा समेत पूरा संघ परिवार इसे दूर की राजनीतिक कौड़ी मानकर मंदिर निर्माण का श्रेय किसी भी सूरत में अपने हाथ से निकलने नहीं देना चाहता था। इसलिए राव के प्रयास सिरे नहीं चढ़ सके। इसके बाद सत्ता की राजनीति में कांग्रेस ने लगातार वाम मोर्चा और तीसरे मोर्चे के दलों के साथ कई बार सियासी साझेदारी की अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर उसने उन्हीं दलों के सुर में सुर मिलाया।



सोनिया गांधी-मनमोहन सिंह के जमाने में राम मंदिर मुद्दे पर कांग्रेस के रुख कि अदालत से इस विवाद का समाधान हो या दोनों पक्ष आपसी सहमति से हल करें, को संघ परिवार ने अपने प्रचार माध्यमों से हिंदू विरोधी रुख साबित करने में कामयाबी पाई। यह अलग बात है कि मंदिर निर्माण का रास्ता आखिरकार अदालत के फैसले से ही साफ हुआ है। लेकिन भाजपा और संघ परिवार ने अदालत के फैसले का श्रेय लेते हुए इसे अपनी जीत के रूप में स्थापित कर दिया है।


प्रियंका गांधी इसे समझ रही हैं। 2017 और 2018 के विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी ने भी मंदिरों में जाकर कांग्रेस की हिंदू विरोधी छवि को ठीक करने की पुरजोर कोशिश की थी, जिसका लाभ भी कांग्रेस को तीन राज्यों में जीत के रूप में मिला था। इधर पांच अगस्त को होने वाले मंदिर भूमि पूजन समारोह को जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति से भाजपा और संघ परिवार ने अपने कार्यक्रम में बदल दिया है, उसे लेकर कांग्रेस बेहद असमंजस की स्थिति में है। 


एक तरफ दिग्विजय सिंह, आचार्य प्रमोद कृष्णम जैसे नेताओं ने मुहूर्त और समय को लेकर सवाल उठाए हैं तो दूसरी तरफ सलमान खुर्शीद ने इस आयोजन को सर्वदलीय न बनाने पर एतराज जताया है। लेकिन इन नेताओं के बयानों को फिर इस रूप में प्रचारित किया गया कि कांग्रेस अभी भी राम मंदिर निर्माण में बाधा डाल रही है। इसके बाद प्रियंका गांधी को मैदान में उतरना पड़ा और उन्होंने ट्वीट करके बता दिया कि कांग्रेस भी राम मंदिर के उतने ही पक्ष में है जितना कि भाजपा या संघ परिवार। अब प्रियंका की लाइन ही कांग्रेस की लाइन होगी और पार्टी के नेताओं को इसी हिसाब से अपने बयान देने होंगे।


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