सावन के महीने में शिव जी को ऐसे करे प्रसन्न,मिलेगा मनचाहा वर और फल


धार्मिक डेस्क,(स्वतंत्र प्रयाग), श्रावण मास में कावड़ के मेले भी लगते है लेकिन इस बार कोरोना वायरस संक्रमण के कारण इन आयोजनों पर रोक है जिससे सड़को पर वह रौनक नही देखने को मिलेगी जो अब तक मिलती रही है।


इसके अलावा मंदिरों में भी एक बार मे पाँच लोगो ही जा सकते है, सावन का महीना भगवान शिव जी का प्रिय महीना है और शिव जी को अपने भक्तों से बहुत स्नेह रहता है, वह तो नीलकंठ है जोकि विष को अपने कंठ में रख लेते है।


और अमृत अन्यो को देते है, शिवजी तो मात्र एक लोटे जल से प्रसन्न हो जाने वाले भगवान है और यदि श्रावण मास में उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करेंगे तो निश्चित सफल होंगे,श्रावण की महाशिवरात्रि इस बार 11 जुलाई रविवार को पड़ रही है।श्रावण माह का समापन अगस्त में रक्षाबंधन के दिन होगा और और उस दिन भी सोमवार ही है।


श्रावण माह के त्योहार


इस माह में अनेक महत्वपूर्ण त्योहार मनाये जाते है,जिसमे हरियाली तीज,रक्षाबंधन, नागपंचमी आदि प्रमुख हैं इस मास में शिव की आराधना का विशेष महत्व है।


इस माह में पड़ने वाले सोमवार सावन के सोमवार कहे जाते है जिनमे स्त्रियां तथा विशेष तौर पर कुँवारी युवतियाँ भगवान शिव का नियमित तौर पर व्रत रखती है ।


मान्यता है कि सावन का सोमवार का व्रत रखने से लड़कियों को मनचाहा वर और महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।


कोरोना से पड़ा असर


श्रावण मास में देश के विभिन्न भागो में काँवड़ के मेले भी लगते है लेकिन इस बार कोरोना वायरस संक्रमण के कारण इन आयोजनों पर रोक है जिससे सड़को पर वह रौनक नही देखने को मिलेगी जो अब तक मिलती रही है।


इसके अलावा मंदिरों में भी चूंकि एक बार में पाँच लोग ही अंदर जा सकते है, ऐसे में लोगो की संख्या कम रहने की उम्मीद है वरना तो सावन के सोमवारों को शिव के शिवालयों में दूर दूर तक लाईने लग जाती है।


शिवजी का पूजन ऐसे करे


श्रद्धालु पूरे इस मास शिवजी के नियमित व्रत और प्रतिदिन उनकी विशेष पूजा अराधना करते है। शिवजी के पूजा में गंगाजल के उपयोग को विषेस माना जाता है। शिवजी की पूजा आराधना करते समय उनके पूरे परिवार अर्थात शिवलिंग माता पार्वती, कार्तिकेय जी गणेशजी और वाहन नंदी की संयुक्त रूप से पूजा की जानी चहिये। शिवजी के स्नान के लिए गंगाजल का उपयोग किया जाता है, इसके अलावा कुछ लोग भांग घोटकर कर भी चढ़ाते है।


शिवजी के पूजा में लगने वाली सामग्री में जल, दूध,दही,चीनी,शहद,पंचामृत,कलावा,वस्त्र,जनेऊ,चंदन,रोली,चावल,फूल,बेलपत्र,दुब,फल,विजिया,भांग,धतूर,कंलघट्ठा,पान, सुपारी,लौंग, इलाइची,धूप,दिप,आदि का इस्तेमाल किया जाता है।


श्रावण मास के प्रथम सोमवार से व्रत को शुरू किया जाता है,प्रत्येक सोमबार को गणेशजी,शिवजी,पार्वती जी पूजा की जाती है।इस सोमबार व्रत से पुत्रहीन पुत्रवान और निर्धन धनवान होते है। स्त्री अगर ये व्रत करती है तो शिवजी उसके पति की रक्षा करते है,सोमबार का व्रत साधारणतया दिन के तीसरे पहर तक होता है।


इस व्रत में फलहार या पारण का कोई खास नियम नही है, किंतु आवश्यक है कि दिन रात में केवल एक ही समय भोजन करे। सोमवार के व्रत में शिव पार्वती जी की पूजा करनी चाहिए। सावन पर मंदिरों में दिखती है अलग ही छटा श्रावण मास में देशभर में शिवालयों में सुबह से ही श्रद्धालुओ की भीड़ उमड़ने लगती है तथा बम बम भोले के जयकारे से मंदिर गूँजने लगता है।


माना जाता है कि श्रावण माह में एक बेलपत्र शिव जी को चढ़ाने से तीन जन्मो के पापो का विनास होता है, एक अखंड बेलपत्र अर्पण करने से कोटि बेलपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है।


इस मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामुट्ठी चढ़ाई जाती है। इससे सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है तथा मनुष्य अपने बुरे कर्मो से मुक्ति पा सकता है।


ऐसी मान्यता है की भारत के पवित्र नदियों के जल से अभिषेक किये जाने से शिव जी प्रसन्न होकर भक्तो की मनोकामना पूरी करते है।


श्रद्धालुगढ़ कावड़िये के रूप में पवित्र नदियों से जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते है,माना जाता है कि कांवड़ियां रावण था।


भगवान श्री राम ने भी भगवान शिव को काँवड़ चढ़ाई थी 


श्रावण मास से जुड़ी मान्यताये


इस माह के बारे में यह भी माना जाता है कि इस दौरान भगवान शिव पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे,वहाँ उनका स्वागत अघार्य और जल अभिषेक से किया गया था।माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह भगवान शिव अपनी ससुराल आते है।


भू लोक वासियो के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है, इसके अलावा पौराडिक में वर्णन आता है की इसी सावन मास में समुन्द्र मंथन किया गया था।


समुद्र मथने के बाद जो विष निकला उसे भगवान भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की, लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया इसी से उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ा, विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया।


इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है, यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने के विशेष प्राप्ति होती है।


शिवपुराण में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल है।


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