उत्तर प्रदेश में लॉकडाउन से कोर्ट के मुंशियो की हालत खराब परिवार भी चलाना हो गया मुश्किल



प्रयागराज,(स्वतंत्र प्रयाग)वैसे तो कोरोना वायरस वैश्विक महामारी से पूरा देश ही जूझ रहा है और इसमें हर वर्ग के कामगार शामिल है  परन्तु वकीलों के साथ कोर्ट में काम कर रहे और न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े लोगों में शुमार मुन्शियो (एडवोकेट्स क्लर्क) की भी परेशानी किसी से कम नहीं है।


इलाहाबाद हाईकोर्ट में लगभग 18 हजार के करीब प्रैक्टिस करने वाले वकीलों की संख्या है. सभी वकीलों के पास अपने मुन्शी नहीं होते, परन्तु वे वकील भी अपने साथी के मुन्शी से काम लेते रहते हैं और काम के एवज में उन्हें पैसे देते हैं लाकडाउन की घोषणा के पहले से ही हाईकोर्ट परिसर को सैनेटाइजेशन के लिए बंद कर दिया गया था।


बाद में देशव्यापी लाकडाउन की प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद हाईकोर्ट भी बंद कर दिया गया है  इस बंदी के चलते हाईकोर्ट के जूनियर वकीलों को परेशानी तो है ही, उनसे भी अधिक परेशानी हाईकोर्ट के लगभग चार हजार के करीब मुन्शियो के परिवारों के सामने आ गई है।


ये मुन्शी अपने प्रतिदिन की आमदनी से ही अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं  कोर्ट खुलने पर इनकी आमदनी होती है और बंद रहने पर बंद हो जाती है बहुत कम मुन्शियो को वकीलों से मासिक वेतन मिलता है जिसे मिलता भी है वह बहुत थोड़ा मिलता है और उससे परिवार का भरण पोषण सम्भव नहीं होता।


इनकी आमदनी का जरिया कोर्ट से सम्बंधित विविध प्रकार के कामों जैसे- आदेश निकालना,  मुकदमा दाखिल करना,  केसो की कोर्ट में निगरानी रखना आदि से होती है अचानक देशव्यापी  लाकडाउन के चलते इन मुन्शियो  व इनके परिवार के भरण-पोषण की समस्या खडी हो गयी है।


सरकार तक इनकी तकलीफें पहुंचाने वाला कोई संगठन नहीं है और न ही कोई ऐसी संस्था है जो इनकी परेशानियों को सरकार के सामने उठाए इन मुन्शियो का ऐसा कोई बड़ा संगठन भी नहीं होता कि वे इसके माध्यम से अपनी इस समस्या को हल कर सके।


अब तो इनके सामने आम लोगो को मिल रही सरकारी राहतों के अलावा और कोई चारा नहीं है, जिससे ये अपने परिवार की भूख मिटा सके  अदालती कामकाज से जीवन यापन करने वाले मुंशियो के सामने कोई नही है जिसे वे अपनी व्यथा सुनाकर निदान पा सके।


अगर लाकडाउन का आदेश और बढता है तो न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े लोगों को इनकी परेशानी पर गंभीरता से विचार कर उसका कोई शीघ्र निदान ढूढना होगा,  अन्यथा इनका जीवन यापन दुश्कर हो जाएगा बार काउन्सिल को वकीलों के साथ साथ मुंशियो की दशा पर विचार कर इनकी तकलीफ के निदान की व्यवस्था करनी चाहिए।


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