सेवा ही मानव जीवन का सौंदर्य और श्रृंगार है: रमाकांत त्रिपाठी



 प्रयागराज,(स्वतंत्र प्रयाग), अपने लिए तो सभी जीते हैं, जो दूसरों की मदद के लिए आगे आते हैं वे सच्चे मानव होते हैं। 
यह बात पी .बी. दीक्षा फाउंडेशन के महासचिव रमाकांत त्रिपाठी  ने कोरोना वायरस से बचाव के लिए मास्क वितरित करते हुए कहीं।


उधर संस्था के द्वारा गरीबों को भोजन सामग्री वितरित किया गया और संस्था की कोषाध्यक्ष रेनू त्रिपाठी कहा कि नर सेवा ही नारायण सेवा है महिला समाज सेवी आरती शुक्ला ने भी पी .वी .दीक्षा फाउंडेशन द्वारा जगह-जगह वितरित किए गए भोजन सामग्री में अपना योगदान दीया। 


सचिव रमाकांत त्रिपाठी ने कहा कि  संसार में दया ही श्रेष्ठ धर्म है।' अगर अपने से दीन-हीन, असहाय, अभावग्रस्त, आश्रित, वृद्ध, विकलांग, जरूरतमंद व्यक्ति  दया दिखाते हुए उसकी सेवा और सहायता न की जाए, तो समाज भला कैसे उन्नति करेगा? सच तो यह है कि सेवा ही असल में मानव जीवन का सौंदर्य और शृंगार है।


सेवा न केवल मानव जीवन की शोभा है, अपितु यह भगवान की सच्ची पूजा भी है भूखे को भोजन देना, प्यासे को पानी पिलाना, विद्यारहितों को विद्या देना ही सच्ची मानवता है।


सेवा से मिलता मेवा: दूसरों की सेवा से हमें पुण्य मिलता है- यह सही है, पर इससे तो हमें भी संतोष और असीम शांति प्राप्त होती है। परोपकार एक ऐसी भावना है, जिससे दूसरों का तो भला होता है, खुद को भी आत्म-संतोष मिलता है।


मानव प्रकृ ति भी यही है कि जब वह इस प्रकार की किसी उचित व उत्तम दिशा में आगे बढ़ता है और इससे उसे जो उपलब्धि प्राप्त होती है, उससे उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। सौ हाथों से कमाएं, हजार हाथों से दान दें: अथर्व वेद में कहा गया है 'शतहस्त समाहर सहस्त्र हस्त सं किर'। अर्थात् हे मानव, तू सैकड़ों हाथों से कमा और हजारों हाथों से दान कर।


प्रकृति भी मनुष्य को कदम-कदम पर परोपकार की यही शिक्षा देती है,  हमें प्रसन्न रखने और सुख देने के लिए फलों से लदे पेड़ अपनी समृद्धि लुटा देते हैं,  पेड़-पौधे, जीव-जंतु उत्पन्न होते हैं, बढ़ते हैं और मानव का जितना भी उपकार कर सकते हैं, करते हैं तथा बाद में प्रकृति में लीन हो जाते हैं।


उनके ऐसे व्यवहार से ऐसा लगता है कि इनका अस्तित्व ही दूसरों के लिए सुख-साधन जुटाने के लिए हुआ हो। सूर्य धूप का अपना कोष लुटा देता है और बदले में कुछ नहीं मांगता। चंद्रमा अपनी शीतल चांदनी से रात्रि को सुशोभित करता है।


शांति की ओस टपकाता है और वह भी बिना कुछ मांगे व बिना किसी भेदभाव के। प्रकृति बिना किसी अपेक्षा के अपने कार्य में लगी है और इससे संसार-चक्र चल रहा है। दया है धर्म, परपीड़ा है पाप: दूसरों के साथ दयालुता का दृष्टिकोण अपनाने से बढ़कर कोई धर्म नहीं है।


इसी तरह अगर किसी को अकारण दुख दिया जाता है और उसे पीड़ा पहुंचाई जाती है, तो इसके समान कोई पाप नहीं है  ऋषि-मुनियों ने बार-बार कहा है कि धरती पर जन्म लेना उसी का सार्थक है, जो प्रकृति की भांति दूसरों की भलाई करने में प्रसन्नता का अनुभव करे।


एक श्रेष्ठ मानव के लिए सिर्फ परोपकार करना ही काफी नहीं है, बल्कि इसके साथ-साथ देश और समाज की भलाई करना भी उसका धर्म है। उन्होंने कहा कि  लोग लाख डाउन का कड़ाई से पालन करें ताकि समस्या से निजात मिल सके। यह जानकारी मीडिया प्रभारी जितेन शुक्ला  ने एक प्रेस विज्ञप्ति में दी।


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