निदेशक उद्यान एवम खाद्य प्रसंस्करण ने किसानों को कीटो तथा रोगों से बचाने के दिए सुझाव


लखनऊ,(स्वतंत्र प्रयाग) निदेशक उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण, उत्तर प्रदेश एस बी शर्मा ने बाताया कि आलू, आम, साकभाजी आदि तथा औद्यानिक फसलों को प्रतिकूल मौसम में रोगों एवं व्याधियों से बचाने के लिये किसानों को सजग रहना जरूरी है। उन्होने फसलों को कीटों व अन्य रोगों से बचाव हेतु किसानों को महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं।


शर्मा जी ने बताया कि वातावरण में तापमान में गिरावट एवं बुंदाबांदी की स्थिति में आलू की फसल पिछैती  झूलसा रोग के प्रति अत्यन्त संवेदनशील होती है।


श्री शर्मा ने बताया कि प्रतिकूल मौसम विशेषकर बदलीयुक्त बूंदा-बांदी एवं नम वातावरण में झुलसा रोग का प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है तथा फलों को भारी क्षति पहुॅचती है। पिछैती झुलसा रोग के प्रकोप से पत्तियाॅ सिरे से झुलसना प्रारम्भ होती हैं, जो तीव्रगति से फैलती है। 


पत्तियों पर भूरे काले रंग के जलीय धब्बे बनते हैं तथा पत्तियों के निचली सतह पर 10-20 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम पर इस रोग का प्रकोप बहुत तेजी से होता है और 2 से 4 दिनों के अन्दर ही सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती है। 


आलू की फसल को अगेती व पिछैती  झुलसा रोग से बचाने के लिये जिंक मैगजीन कार्बामेट 2.0 से 2.5 किग्रा  अथवा मैंकोजेब 2 से 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 ली पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाये ।


तथा माहू कीट के प्रकोप की स्थिति में नियंत्रण के लिये दूसरे छिड़काव में फफूॅदीनाशक के साथ कीट नाशक जैसे-डायमेथोएट 1 ली प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। 


जिन खेतों में पिछैती झुलसा रोग का प्रकोप हो गया हो तो ऐसी स्थिति में रोकथाम के लिये अन्तःग्राही (सिस्टेमिक) फफॅूदनाशक युक्त रसायन 3 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव  करें।


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