नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर सरकार ,विपक्ष व भारतीय जनमानस में रह रह कर उठ रहें बवंडर के बीच में भारतीय संविधान ?

 



नई दिल्ली(स्वतंत्र प्रयाग) सर्दी बढ़ने से उत्तर भारत में पारा सामान्य से काफी नीचे आ गया है। लेकिन नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की आग ने माहौल गरमा दिया है। सियासत चरम पर है। छात्रों में गुस्सा है, लोगों में डर है। करीब एक हफ्ते से जारी विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। सवाल है कि आखिर इस कानून का इतना विरोध क्यों हो रहा है? 



दिल्ली, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के अलीगढ़, लखनऊ, इलाहाबाद में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की वजह यह है कि इसे मुस्लिमों के खिलाफ माना जा रहा है। लोगों में डर है कि इस बिल के चलते उनकी नागरिकता खतरे में पड़ जाएगी.। कांग्रेस सहित कुछ प्रमुख विपक्षी दल इस कानून के खिलाफ हैं। इससे कानून के विरोध को हवा मिल रही है। इस बिल में देश के मुस्लिम नागरिकों के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है। इस कानून से उनका कोई संबंध है या फिर नहीं है। लेकिन, कुछ लोगों में यह डर है कि इस बिल की वजह से उनकी नागरिकता खतरे में पड़ जाएगी।


नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी पर जानकारी थोड़ी है और भ्रम ज़्यादा, पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। लोग सवाल उठा रहे हैं, चिंता ब्यक्त रहे हैं।


वहीं पर इसी बीच सरकार और विपक्ष के हमारे नेताओं के द्वारा समय समय पर दिए गये बयानों से कुछ ज्यादा ही भ्रामक स्थिति उत्पन्न हो रही है।




  हिमंता बिस्वा शर्मा


असम के वित्त मंत्री और पूर्वोत्तर के लिए भारतीय जनता पार्टी के मुख्य रणनीतिकार हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा कि अगर राज्य में नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 पारित नहीं किया जाता है, तो असम 'जिन्ना' के रास्ते चला जाएगा । 



     पूर्व मुख्यमंत्री तरूण गोगोई


असम में एनआरसी की मौजूदा स्थिति से राज्य का हर वर्ग नाराज है और देश के वास्तविक नागरिकों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। 


 



भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा


भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राजस्थान, एमपी, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, केरल और पंजाब के पार्टी प्रदेश अध्यक्षों को कांग्रेस, टीएमसी और कम्युनिस्ट पार्टियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने का निर्देश दिया है। पार्टी द्वारा जारी सर्कुलर में कहा गया है कि ये पार्टियां नागरिक संशोधन कानून के बारे में अफवाहें फैला रही हैं। 



मुख्यमंत्री असम सर्बानंदसोनेलाल 


सोनेवाल ने कहा है कि इस क़ानून के चलते कोई भी विदेशी असम की धरती पर नहीं आ सकता। असम पुत्र होने के नाते कभी किसी विदेशी को यहां बसने नहीं दूंगा।सोनेवाल कभी ऐसा नहीं होने देगा। सोनेवाल का यह ट्वीट भारतीय जनमानस में भ्रम उत्पन्न करने जैसा है। केंद्र सरकार व मीडिया के बोगस प्रोपेगैंडा को ध्वस्त करता है, कि लोग इस क़ानून को नहीं समझे। जब बीजेपी का ही मुख्यमंत्री इस विभाजनकारी क़ानून को नहीं समझ पा रहा हो, तो फिर कौन और क्या समझना बाक़ी है। आख़िर सोनेवाल किस विदेशी के नहीं बसने की बात कर रहे हैं? क्या वे हिन्दू शरणार्थियों के बारे में भी कह रहे हैं? बिल्कुल, वर्ना वे तीन देशों से आने वाले हिन्दू बौद्ध जैन पारसी, ईसाई और सिख को असम में बसाने की बात करते?


सरकार ने आधिकारिक तौर पर बहुत कम जानकारी दी है जबकि पार्टी से जुड़े लोग तरह-तरह के बयान दे रहे हो। जिससे भ्रम बढ़ा है। बहुत सी आशंकाओं के बीच कुछ मुख्य सवालों के जवाब को ढूंढने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। 


आइए इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश करते हैं।


नागरिकता संशोधन कानून संवैधानिक है क्योंकि इसे संसद ने पास किया है, क्या इसे असंवैधानिक कहना गलत है?


=संसद से पास हुए किसी क़ानून को लेकर अगर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाए तो उसकी संवैधानिकता पर कोर्ट फैसला ले सकता है।
मिसाल के तौर पर 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 का सेक्शन 55 इसमें आर्टिकल 368 में क्लॉज 4 और 5 जोड़ा गया जिसके मुताबिक़ संविधान में किसी तरह का संशोधन किसी भी वजह से कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता और संशोधन के लिए संसद की शक्ति असीमित होगी।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन प्रावधानों को असंवैधानिक ठहरा दिया था।


नागरिकता संशोधन क़ानून को भी कोर्ट में चुनौती दी गई है और 22 जनवरी 2020 से सुनवाई शुरूहोगी। 



नागरिकता संशोधन क़ानून भारतीय नागरिकों के बारे में नहीं है। ना ही मुसलमानों के बारे में तो विरोध क्यों?


= ये ठीक है कि नागरिकता संशोधन कानून भारत के नागरिकों के लिए नहीं है। ये सिर्फ 3 देशों के 6 धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता दिए जाने के बारे में है।


लेकिन विरोध इसलिए है क्योंकि खुद गृह मंत्री अमित शाह ने अपने भाषणों और बयानों में नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी दोनों को जोड़ कर पेश किया है। 



जब एनआरसी अभी तक आया ही नहीं तो विरोध क्यों?


= विरोध की मुख्य वजह आशंका है, सरकार ने कहा है कि किसी भारतीय नागरिक को चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन आशंकित लोगों ख़ास तौर पर मुसलमानों को आश्वस्त करने के लिए सरकार ने फिलहाल कुछ ठोस न तो कहा है, न किया है। 


बहुत सारे लोगों को लगता है कि यह अन्यायपूर्ण है, कुछ लोगों को लगता है कि जो लोग एनआरसी के तहत अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे उन्हें डिटेंशन सेंटर में जाना होगा।


इसके अलावा लोगों में नोटबंदी जैसी आपाधापी और परेशानी की आशंका भी विरोध की एक वजह हो सकती है क्योंकि 135 करोड़ लोगों की नागरिकता की जांच करना कोई मामूली काम नहीं होगा।वहीं पर अभी तक पूरे देश के लोगों के में आधारकार्ड ही नहीं हैं।?


अगर 10 प्रतिशत मामलों में भी गड़बड़ी हुई तो यह 13 करोड़ से ज़्यादा लोगों की ज़िंदगी को मुबीसत में डाल सकता है?


मिसाल के तौर पर असम में एनआरसी की वजह से 19 लाख लोग लिस्ट से बाहर हो गए थे जिसमें अधिकतर हिंदू थे।?


असम एनआरसी के लिए लोगों को अपने पूर्वजों के 1971 से पहले भारत में होने के दस्तावेज़ जमा करने थे और फिर उनसे अपना रिश्ता साबित करने के लिए दस्तावेज़ जमा करने थे।


असम बीजेपी ने पहले एनआरसी का स्वागत किया था लेकिन फाइनल लिस्ट के बाद उसे नकार दिया। जिसके बाद अमित शाह ने कहा कि पूरे देश के साथ ही असम में भी फिर से एनआरसी होगी।


अब नागरिकता संशोधन कानून आने से कहा जा रहा है कि अगर एनआरसी लिस्ट में गैर-मुसलमान बाहर हुए तो इस क़ानून से नागरिकता ले सकेंगे लेकिन इस क़ानून से मुसलमान नागरिकता नहीं ले सकेंगे।


क्या भारत तीन दूसरे देशों के अल्पसंख्यकों की मदद कर रहा है जो वहां धार्मिक प्रताड़ना झेल रहे हैं।


= गृह मंत्री के बयानों में ऐसा ही कहा गया है लेकिन नागरिकता संशोधन कानून में कहीं भी धार्मिक प्रताड़ना शब्द नहीं लिखा है। साथ ही ये सवाल भी पूछा जा रहा है कि ये कैसे तय होगा कि कोई धार्मिक तौर पर प्रताड़ित है।


दूसरा, लोगों का विरोध इस बात पर है कि भारत को धर्म को आधार बनाए बिना धार्मिक प्रताड़ना झेल रहे लोगों को शरण देनी चाहिए क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। 


 



क्या भारत में कहीं भी डिटेंशन सेंटर नहीं हैं?


= प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में कहा कि "सिर्फ कांग्रेस और अर्बन नक्सलियों द्वारा उड़ाई गई डिटेन्शन सेन्टर वाली अफ़वाहें सरासर झूठ है, बद-इरादे वाली है, देश को तबाह करने के नापाक इरादों से भरी पड़ी है - ये झूठ है, झूठ है, झूठ है।"


लेकिन सच ये है कि 16 जुलाई 2019 को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के उत्तर में गृह राज्य मंत्री जी कृष्ण रेड्डी ने कहा था कि असम में डिटेंशन सेंटर बनाए गए हैं।और संबित पात्रता ने एक इंटरव्यू में कहा कि कांग्रेस सरकार के समय में ही तीन डिटेंशन सेंटर बनाए गए हैं।


उन्होंने कहा था कि ये सेंटर फॉरेनर्स एक्ट 1946 की धारा 3(2)(ई) के तहत उन लोगों को रखने के लिए बनाए गए हैं जिसकी नागरिकता की पुष्टि नहीं हो पाई है।


जबकि कुछ समाचार एजेंसीज के रिपोर्टरों ने इससेे पहले ही असम में बने, इन डिटेंशन सेंटरों पर रिपोर्टिंग कर चुके हैं। वहां पर एनआरसी लिस्ट से बाहर हुए लोग रखे गए हैं। 



भारत की नागरिकता कैसे मिल सकती है?


भारत की नागरिकता जन्म, वंश, रजिस्ट्रेशन, नेचुरलाइज़ेशन से मिल सकती है। कोई भी विदेशी नेचुरलाइज़ेशन से या रजिस्ट्रेशन से भारत की नागरिकता ले सकता है। चाहे वो किसी भी देश का हो या किसी भी समुदाय से हो।


18 दिसंबर को गृहमंत्रालय के प्रवक्ता के ट्विटर हैंडल से कुछ जानकारियां साझा की गई।
उन्होंने लिखा कि दूसरे देशों के बहुसंख्यक समुदाय के लोग भारत की नागरिकता ले सकते हैं अगर वे इसकी तय शर्तें फॉलो करते हैं। पिछले 6 सालों में 2830 पाकिस्तानियों, 912 अफ़गानियों और 172 बांग्लादेशी नागरिकों को भारत की नागरिकता दी गई है और इनमें से बहुत से लोग उन देशों के बहुसंख्यक समुदाय से थे।


उन्होंने ये भी लिखा कि पिछली सरकारों ने स्पेशल प्रावधान बनाकर पहले भी विदेशियों को भारत की नागरिकता दी है जिन्हें भारत भाग कर आना पड़ा। जैसे 1964 से लेकर 2008 तक 4.61 लाख भारतीय मूल के तमिलों को भारतीय नागरिकता दी गई।
अब सवाल ये उठ रहा है कि अगर ऐसा है तो फिर इसी तरह धार्मिक प्रताड़ना के शिकार लोगों को नागरिकता क्यों नहीं दे दी जाती, चाहे वो किसी भी धर्म के हों। अलग से नागरिकता संशोधन क़ानून की ज़रूरत क्यों पड़ी?




 क्या असम के लोगों के अपने संस्कृति और भाषा को नुक़सान होने का डर सही है?


= सरकार ने संसद में कहा है कि उत्तर-पूर्वी राज्यों के हितों को ध्यान में रखा गया है क्योंकि छठी अनुसूची और इनर परमिट लाइन वाले क्षेत्र इस क़ानून के दायरे से बाहर हैं। 



क्या एनआरसी मोदी सरकार ही पहली बार लेकर आ रही है?


= नहीं, 2003 में कानून में संशोधन कर ये प्रावधान लाया गया।
नागरिकता अधिनियम, 1955 के सेक्शन 14A में लिखा है कि केंद्र सरकार चाहे तो हर नागरिक को रजिस्टर कर सकती है और एक राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी कर सकती है।
केंद्र सरकार चाहे तो एक रजिस्टर मेंटेन कर सकती है और इसके लिए नेशनल रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी भी बना सकती है। 


गृह मंत्रालय के प्रवक्ता कह रहे हैं कि भारत की नागरिकता किसी भी ऐसे दस्तावेज़ से साबित की जा सकती है जो जन्मतिथि और जन्मस्थान से जुड़ा हो और वे ऐसी लिस्ट लाएंगे जिसमें आम दस्तावेज़ ही मांगे जाएंगे ताकि किसी भारतीय नागरिक को परेशानी ना हो।
लेकिन दूसरी तरफ़ कई न्यूज़ वेबसाइट ने सरकारी अधिकारियों के हवाले से कहा कि वोटर कार्ड, आधार कार्ड, पासपोर्ट नागरिकता का सबूत नहीं, ट्रेवल या रेसिडेंसी डॉक्यूमेंट हैं।
पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश श्रीलंका से आए रिफ्यूजी काफी वक्त से भारत की नागरिकता मांग रहे हैं।


तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री मोदी को खत लिखकर बताया था । कि तमिलनाडु में 1,02,055 रिफ्यूजी हैं जो पिछले 30 सालों से रिफ्यूजी कैंपों में रह रहे हैं। लेकिन उन लोगों को अभी तक भारत की नागरिकता नहीं दी जा सकी है।


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