मौजूदा साल में मोदी सरकार के फैसलों से घरेलू समस्याओं के साथ ही, विश्व की 5 बढ़ी मुश्किलें में भारत

सर्वे में भारत के कश्मीर-सीएए कानून को लेकर आधार बनाया :-अमेरिकी एजेंसी 



नई दिल्ली/वाशिंगटन (स्वतंत्र प्रयाग) दिल्ली साल 2020 की शुरुआत दुनिया में बड़ी हलचलों के साथ हुई है। फिर चाहे अमेरिका और ईरान के बीच विवाद हो या फिर भारत में लगातार हो रहे सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन मौजूदा समय के हालात को देखते हुए। दुनिया के सामने कौन-सी बड़ी चुनौती होंगी। इनको लेकर अमेरिका के एक ग्रुप एजेंसी ने रिपोर्ट जारी की है। इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत दुनिया की पांचवीं बड़ी भू-राजनीतिक जोखिम की लिस्ट में शामिल किया है। एजेंसी ने देश में सांप्रदायिक एजेंडे, गिरती हुई अर्थव्यवस्था को आधार बनाकर रिपोर्ट तैयार किया गया है।



वहीं पर एक तरफ मुख्य रूप से कुछ घरेलू बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है जिसमें सुस्त अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने की तमाम कोशिशों के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार को इस साल बहुत सफलता नहीं मिली है। वित्तीय विशेषज्ञों की मानें तो  अर्थव्यवस्था में रफ्तार लाने और उच्च विकास-दर हासिल करने के लिए सरकार को कई मोर्चों पर अभी काम करना होगा।


अर्थव्यवस्था में सुस्ती की वजह से कर संग्रह घटा है।ताजा आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार सरकार का राजकोषीय घाटा वार्षिक लक्ष्य के 107 प्रतिशत तक पहुंच गया है। चालू वित्त वर्ष में घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3.4 प्रतिशत तक रखने का लक्ष्य है। यह लक्ष्य पाना सरकार के लिए मुश्किल होगा। बढ़ता राजकोषीय घाटा अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित करता है। इससे ब्याज-दरों के साथ महंगाई भी बढ़ती है। राजकोषीय घाटे को कम करना एक बड़ी चुनौती के रूप में लेना होगा।
वित्त वर्ष 2019 में निजी निवेश की दर 28.9 फीसदी रह गई है। आंकड़ों की मानें तो निजी व सरकारी निवेश बीते14 साल के न्यूनतम स्तर पर है।



वहीं पर देश में रोजगार के अवसरों को तलाशना और फिर उसे बढ़ाना होगा।बीते समय में देशभर में छोटी कंपनियां प्रभावित हुई हैं। बड़ी कंपनियों में भी नौकरी के अवसर घटे हैं। देश के श्रमबल में बेरोजगारी की दर 2017-18 में 6.1 % थी, जो 45 साल का उच्चतम स्तर था।
बता दें कि सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य 2022
तक का रखा हैं सर्वाधिक उत्पादकता वाले इस क्षेत्र पर देश की लगभग 58 प्रतिशत जनसंख्या निर्भर करती है। देश में कृषि का आधुनिकीकरण नहीं होना और परंपरागत कृषि पद्धतियों का चलन किसानों की आय बढ़ाने में बड़ी बाधाएं हंै। किसानों को फसल की सही कीमत मिले यह भी सही तरीके से सुनिश्चित करना होगा।
फिलहाल सरकार के लिए महंगाई को काबू में रखना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।आरबीआई ने अनुमान लगाया है कि जनवरी से मार्च 2020 तक खाने-पीने की वस्तुओं में महंगाई बढ़ेगी। महंगाई बढ़ने से मांग प्रभावित होगी, जिससे अर्थव्यवस्था को रफ्तार देना कठिन हो जाएगा।



वहीं पर दूसरी तरफ आपको बता दें कि अमेरिकी एजेंसी (यूरेशिया समूह) हर साल इस तरह की लिस्ट जारी करती है। यह अमेरिका की सबसे प्रभाव- शाली रिस्क असेसमेंट कंपनियों में से एक है। भारत को लेकर इस रिपोर्ट में लिखा गया है। ‘नरेंद्र मोदी ने अभी तक अपना दूसरा कार्यकाल सामाजिक मुद्दों पर बिताया है। जबकि देश आर्थिक एजेंडा कहीं पीछे छूट गया है। मौजूदा वर्ष में इसका असर देखने को मिलेगा, ना सिर्फ विदेश नीति बल्कि आर्थिक नीति पर भी ये असर छोड़े सकता है?


एजेंसी ने वहीं पर यह भी लिखा है,कि मोदी सरकार ने बीते दिनों में जम्मू-कश्मीर के स्पेशल स्टेटस को हराया साथ ही नॉर्थईस्ट में घुसपैठियों को लेकर सख्ती दिखाई। धर्म के आधार पर शरणार्थियों को नागरिकता दी।और इन सभी फैसलों के पीछे सबसे बड़ा हाथ देश के गृह मंत्री अमित शाह का है।



रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि आने वाले साल में देश में धार्मिक मामलों पर राजनीति गर्माएगी, जिसका असर निचले स्तर तक दिखने की संभावना व्यक्त की गयी है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर, आर्थिक मोर्चे पर भी सरकार के सामने कई चुनौतियां आएंगी। भारत की इस तस्वीर का असर दुनिया में पड़ेगा और विदेश नीति में गिरावट आ सकतीं हैं। इस रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और हिंदू राष्ट्र के एंजेडे को लेकर भी बात की गई है।


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