विशेष सुरक्षा दल :-स्पेशल् प्रोटेक्शन् ग्रुप् ( एसपीजी)

 



 


संसद में विशेष सुरक्षा दल(एसपीजी) में संशोधन करने वाले विधेयक को स्वीकृति देदी है। कानून में किए गए संशोधन के तहत अब केवल प्रधानमंत्री तथा पद छोडऩे के बाद पूर्व प्रधानमंत्री को 5 वर्ष तक विशेष सुरक्षा घेरा मिलेगा। गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयक पर राज्यसभा में चर्चा के जवाब में कहा कि इस प्रस्तावित कानून के कारण यदि सबसे ज्यादा किसी का नुकसान होगा तो वह वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं क्योंकि इस शीर्ष पद से हटने के पांच साल बाद उनसे यह विशेष सुरक्षा घेरा वापस ले लिया जाएगा। हालांकि विधेयक पर गृह मंत्री की यह सफाई कांग्रेस सदस्यों को संतुष्ट नहीं कर पाई तथा उनके सदस्यों ने वाम दलों और द्रमुक के सदस्यों के साथ शाह के जवाब के बाद सदन से वाकआउट किया। शाह के जवाब के बाद सदन ने विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। शाह ने यह भी कहा, 'हम परिवार नहीं, परिवारवाद के खिलाफ हैं।' गौरतलब है कि विधेयक की धारा 4 में एक उपधारा का प्रस्ताव किया गया है कि पीएम और उनके साथ रहने वाले उनके निकट परिजनों को एसपीजी सुरक्षा मिलेगी। इसी के साथ किसी पूर्व प्रधानमंत्री और उनके आवंटित आवास पर उनके निकट परिजनों को संबंधित नेता के प्रधानमंत्री पद छोडऩे की तारीख से पांच साल तक एसपीजी सुरक्षा प्रदान की जाएगी। शाह ने कहा, 'ऐसी भी बात देश के सामने लाई गई कि गांधी परिवार की सरकार को चिंता नहीं है। हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि सुरक्षा हटाई नहीं गई है, सुरक्षा बदली गई है। उन्हें सुरक्षा जेड प्लस सीआरपीएफ कवर, एएसएल (अग्रिम सुरक्षा प्रबंध) और एम्बुलेंस के साथ दी गई है।' गृह मंत्री ने इस बात पर हैरत जतायी कि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, वीपी सिंह, आईके गुजराल, पीवी नरसिंह राव आदि के परिजनों की भी एसपीजी सुरक्षा हटा ली गई लेकिन किसी ने आपत्ति नहीं जताई। उन्होंने कहा कि हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भी एसपीजी सुरक्षा हटा ली गई। किंतु कांग्रेस ने कभी मनमोहन सिंह की एसपीजी सुरक्षा हटाने का विरोध क्यों नहीं किया? इस पर नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने अपने स्थान पर खड़े होकर एक पत्र दिखाया और कहा कि उन्होंने यह पत्र भेजकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की एसपीजी सुरक्षा हटाये जाने पर ऐतराज व्यक्त किया था। हालांकि शाह ने उनकी इस सफाई को खारिज करते हुए कहा, 'फ़ॉरमेल्टी (औपचारिकता) एवं विरोध में अंतर होता है आजाद साहब।' एसपीजी कानून में संशोधन को राजनीति से प्रेरित बताते हुए विपक्ष ने आरोप लगाया कि केवल एक परिवार पर निशाना है। इस मुद्दे पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के विवेक तनखा ने कहा, 'साफ है कि केवल एक ही परिवार को इसके दायरे से बाहर रखने के लिए संशोधन किया गया। कहीं ऐसा न हो कि इस परिवार के साथ एक और हादसा हो जाए। ऐसा होता है तो इसके जिम्मेदार आप होंगे।' माकपा सदस्य के के रागेश ने पूछा, 'विधेयक का वास्तविक मंतव्य क्या है?' द्रमुक के पी विल्सन ने कहा कि केवल एक परिवार को लक्ष्य किया गया है। राजद के प्रो. मनोज कुमार झा ने पूछा, 'कौन सा वैज्ञानिक आधार है कि आतंकवादियों की मेमोरी पांच साल में डिलीट जाएगी।' भाकपा के बिनोय विश्वम ने कहा कि इस विधेयक को राजनीतिक द्वेष के तहत लाया गया है। तृणमूल कांग्रेस के मानस रंजन भुनिया ने कहा, 'हमें नहीं भूलना चाहिए कि एक ही परिवार से दो-दो प्रधानमंत्रियों की हत्या हुई।' सपा के रामगोपाल यादव ने कहा कि सत्ता में न रहने पर सुरक्षा का खतरा कहीं ज्यादा होता है।
कांग्रेस व उनके सहयोगियों की समस्या यह है कि वह नेहरू-गांधी युग और परिवार दोनों से बाहर निकल नहीं पा रहे। कांग्रेसियों को तो लगता है कि उनका राजनीतिक बेड़ा गांधी परिवार ही किनारे लगा सकता है, लेकिन कटु सत्य यह है कि गांधी परिवार के गिर्द घूमने वाली कांग्रेस स्वयं ही भारतीय राजनीति में समय के साथ किनारे होती जा रही है।नेहरू-गांधी परिवार के योगदान को भूला नहीं जा सकता। यही कारण है कि देश की जनता ने स्वतंत्रता के बाद पांच दशक से अधिक समय तक नेहरू-गांधी के वंशजों को सत्ता में बिठाए रखा। समय के साथ देश की राजनीति व सामाजिक परिस्थितियों में परिवर्तन आया जिसके परिणामस्वरूप आज भाजपा व उसके सहयोगी दल नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सत्ता सुख ले रहे हैं। सोनिया, राहुल और प्रियंका आज भी देश की राजनीति में एक विशेष पहचान रखते हैं, लेकिन इन तीनों को देश की जनता ने नरेन्द्र मोदी व अमित शाह के विकल्प के रूप में स्वीकार नहीं किया है क्योंकि तीनों देश के जन की भावनाओं को एक सीमा से आगे समझने में असफल रहे हैं।  


 



 मोदी सरकार ने जो परिवर्तन विशेष सुरक्षा घेरा को लेकर किया है वह एक परिवार को रख कर नहीं की बल्कि देशहित को रख कर किया है। यही समझने की आवश्यकता है।



मुकेश मिश्र  सह संपादक


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