जिनपिंग की यात्रा और भारतीय संबंध

चीनी, राष्ट्रपति जिनपिंग की भारत यात्रा पर भी शंका व अविश्वास के बादल अंतिम क्षणों तक मंडराते रहे। इस का प्रथम कारण था चीन द्वारा पाकिस्तान के साथ कश्मीर मामले को लेकर खड़े रहना और संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता का विरोध करना।  भारत जिनपिंग की यात्रा को लेकर काफी दबाव में था लेकिन जिनपिंग की दो दिन की यात्रा के बाद जो बाते सामने आई है उस से स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर स्थिति को सम्भालने व भारत के हित सुरक्षित रखने में सफल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग ने महाबलीपूरम में अनौपचारिक शिखर वार्ता में जिस तरह सात घण्टे अकेले एक दूसरे से बातचीत की उसे भारत चीन संबधों में एक नये अध्याय की शुरूआत कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति  जिनपिंग ने  आतंकवाद सहित कई द्विपक्षीय मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। इस दौरान दोनों देश मतभेदों को समझदारी से सुलझाने, एक दूसरे की चिंताओं के प्रति संवेदनशील रहने और उन्हें विवाद का रूप नहीं देने पर सहमत हुए। दो दिन में करीब सात घंटे की  वार्ता के दौरान मुख्य मुद्दा द्विपक्षीय व्यापार, निवेश और आपसी विश्वास और मजबूत करना रहा। व्यापारिक रिश्ते और निवेश बढ़ाने के लिए दोनों देशों के बीच मंत्रिस्तरीय तंत्र बनाने का फैसला हुआ। वहीं, भारत की कूटनीतिक सफलता यह रही कि इस दौरान कश्मीर मुद्दा नहीं उठा। 24 घंटे की भारत यात्रा के बाद जिनपिंग  नेपाल के लिए रवाना हो गए। विदेश सचिव विजय गोखले के अनुसार ,मोदी और जिनपिंग के बीच कई सत्रों में बातचीत हुई। वुहान शिखर सम्मेलन के बाद की प्रगति पर केंद्रित यह वार्ता खुले माहौल में सौहार्द्रपूर्ण रही। प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता में पीएम मोदी ने कहा, चेन्नई कनेक्ट के जरिए दोनों देशों के बीच दोस्ती का नया युग शुरू होने जा रहा है।  अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए पीएम मोदी को चीन आने का निमंत्रण का दिया, जिसे पीएम ने स्वीकार कर लिया। इसका कार्यक्रम बाद में घोषित होगा। इससे पहले मोदी-जिनपिंग के बीच 90 मिनट की वन-टू-वन वार्ता हुई। दोनों नेता इस बात पर सहमत हैं कट्टरता भारत-चीन सहित दुनिया के लिए बड़ी चुनौती है और इससे साथ मिलकर निपटा जाना चाहिए, ताकि कट्टरवाद और आतंकवाद दोनों देशों के बहु सांस्कृतिक, बहु जातीय, बहु धार्मिक समाजों को प्रभावित नहीं कर पाए। पीएम मोदी ने क्षेत्रीय समग्र आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) पर भारत की चिंताओं से अवगत कराया और कहा, कारोबार, सेवा-निवेश में संतुलन होना चाहिए। इस पर जिनपिंग ने कहा, इन चिंताओं पर ध्यान दिया जाएगा। चीन असंतुलन कम करने को तैयार है। प्रतिनिधिमंडल वार्ता में सीमा विवाद का मुद्दा भी उठा। दोनों देश इस मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए आपसी विश्वास बहाली को और मजबूत करने पर सहमत हुए। जिनपिंग ने रक्षा क्षेत्र में संबंध बढ़ाने की बात कही। इससे दोनों देशों की सेनाओं में विश्वास बढ़ेगा। रक्षामंत्री जल्द चीन का दौरा करेंगे। कैलाश मानसरोवर पर चर्चा, पर्यटन बढ़ाने का प्रस्ताव, दोनों नेताओं के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा पर भी बातचीत पीएम ने तमिलनाडु और चीन के फुचियान के बीच संबंध बढ़ाने पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने दक्षिण भारत और चीन के बीच रिश्ते आगे बढ़ाने के लिए इस अहम माना जाता है। प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता में भारत ने 2018-19 में चीन के साथ 53 अरब डॉलर के व्यापार घाटे का मुद्दा उठाया। चीन ने कहा कि वह इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा करने और ठोस कदम उठाने को तैयार है। दोनों देशों ने व्यापार, निवेश तथा सेवा संबंधी मुद्दों के लिए मंत्रिस्तरीय तंत्र स्थापित करेंगे। चीन से उप प्रधानमंत्री हु छुन ह्वा और भारत से वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण इसका नेतृत्व करेंगी। इसकी रूपरेखा राजनयिक चैनलों के जरिए तय होगी। दोनों के बीच विनिर्माण क्षेत्र के संबंध बढ़ाने पर भी बात हुई।उपरोक्त सब कुछ देखने, सुनने में सब ठीक लगता है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि चीन पाकिस्तान में अकूत धन निवेश कर रहा है। पाकिस्तान चीन को बी आर आई योजना में साथ दे रहा है और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चीन डेरा डाले बैठा और अकसाई चीन में 38 हजार वर्ग कि.मी. पर अवैध कब्जा किये हुये है। आये दिन सीमा विकास को लेकर तनाव हो जाता है। भारत-पाकिस्तान के बीच अतीत में जितने युद्ध हुये हैं चीन ने पाकिस्तान का ही साथ दिया है। चीन सैनिक व आर्थिक दृष्टि से भारत से कहीं अधिक मजबूत है। उस समय अगर वह भारत के आंतरिक मुद्दों पर टिपप्णी करने से बच रहा है तो उस का कारण उसका आर्थिक स्वार्थ ही है। अमरीका से आर्थिक हितों को लेकर बढ़ते टकराव को देखते व पाकिस्तान की कम•ाोर आर्थिक स्थिति को देखते हुये चीन ने भारत के प्रति थोड़ा नर्म रुख अपनाया हुआ है। लेकिन चीन कब बार्डर पर हालात खराब करने की कोशिश शुरुआत कर दें, चीन भारत को माल अधिक बेचता है लेकिन भारत से खरीदता कम है। चीन हमारा पड़ोसी है इस कारण उस से अच्छे सम्बंध बने रहे यह प्रयास तो जारी रहना चाहिये।  लेकिन अगर चीन आर्थिक या सैनिक दृष्टि से भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करता है तो उस स्थिति का भारत कैसे सामना करेगा उस बारे भी आज सोचने की आवश्यकता है। चीन आज अच्छा पड़ोसी होने की बात कर रहा है ,पर भारत को हमेशा सतर्क रहने की आवश्यकता है। चीन ने आज तक भारतीयों के दिलों में चीन के प्रति बनी अविश्वास की भावना को खत्म करने का ठोस आधार भी नही ।



 


मुकेश मिश्र


 


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