महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद को लेकर तकरार, सभी रास्ते अभी भी खुलें
मुंबई (स्वतंत् प्रयाग) महाराष्ट्र में वर्तमान समय राजनैतिक उठा पटक रूकने का नाम नहीं ले रहा है वहीं पर 2004 में भी 2019 की तरह ही सरकार के गठन को लेकर जबर्दस्त तनाव दिखा था. 16 अक्टूबर 2004 को विधानसभा चुनाव के परिणाम आए जिसमें कांग्रेस-एनसीपी को hb 140 सीटें मिलीं जबकि शिवसेना-बीजेपी के पास 126 सीटें थीं और वो बहुमत से दूर थी.
कांग्रेस-एनसीपी के पास निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन था, लेकिन सरकार बनाने को लेकर पेच था कि मुख्यमंत्री किस पार्टी का हो. एनसीपी के पास 71 और कांग्रेस के पास 69 सीटें थीं. इस आधार पर एनसीपी के पास मौका था कि वह कांग्रेस से मुख्यमंत्री पद की मांग करे. उसके ऐसा करने पर मामला फंस गया.
कांग्रेस-एनसीपी के पास बहुमत होने के कारण भी वह सरकार नहीं बन पा रही थी, और 19 अक्टूबर के विधानसभा भंग होने के दिन तक सरकार बनाने को लेकर सहमति नहीं बन सकी.
इसके बाद 16 दिन तक दोनों दलों के बीच लगातार विचार-विमर्श के बीच सहमति बनी और विलासराव देशमुख ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जबकि एनसीपी के खाते में 3 अतिरिक्त मंत्री पद दिए गए. 13 दिन तक राज्य में विधानसभा अस्तित्व में नहीं थी, लेकिन तत्कालीन राज्यपाल मोहम्मद फजल ने इंतजार किया और दोनों दलों को आपसी रजामंदी करने का समय दिया.
इस तरह से देखा जाए तो महाराष्ट्र में चुनाव पूर्व गठबंधन और परिणाम आने के बाद भी सहयोगी दलों के बीच विवाद जारी रहा और सरकार के गठन को लेकर काफी माथापच्ची करनी पड़ी. इस बार भी यही स्थिति है.
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