दो हफ्ते से चल रही थी अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस की बातचीत :सूत्र
मुंबई (स्वतंत्र प्रयाग): महाराष्ट्र की राजनीति में शनिवार को आए 'भूचाल' के बाद मुंबई से लेकर दिल्ली तक की राजनीति गर्म है। शिवसेना जहां कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का ख्वाब देख रही थी वहीं भाजपा ने बाजी मारते हुए एनसीपी के अजित पवार के साथ मिलकर सरकार बना ली।
इस सियासी ड्रामे का केंद्र बिंदु पवार परिवार की अंतर्कलह है। भतीजे के धोखे से आहत शरद पवार ने आनन-फानन में डैमेज कंट्रोल के लिए ट्वीट करते हुए इसे उनका व्यक्तिगत निर्णय बताया। साथ ही शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के साथ प्रेस कांफ्रेस करके साफ किया कि उनका इससे कोई लेना-देना नहीं है।
फिलहाल शरद पवार का पलड़ा भारी है क्योंकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के लगभग सभी विधायक वापस लौट आए हैं।
देवेंद्र फडणवीस और अजित पवारवहीं अजित पवार एकदम अलग-थलग पड़ गए हैं।
महाराष्ट्र में सुबह-सुबह अचानक बदले सियासी समीकरणों ने कई तरह के सवालों को पैदा किया है। जैसे आखिर यह नौबत क्यों आई? अजित पवार ने अचानक भाजपा के साथ जाकर सरकार बनाने का फैसला क्यों लिया? कैसे एनसीपी या पवार परिवार को इसकी कानों कान भनक तक नहीं लगी? इन सवालों के जवाब आपको इनसाइड स्टोरी में मिल सकते हैं।मुंबई मिरर की रिपोर्ट के अनुसार अजित पवार ने 17 नवंबर को शरद पवार के आवास पर हुई एनसीपी बैठक में अपने भविष्य के कदम का संकेत दिया था।
उन्होंने यह कहकर सभी को चौंका दिया था कि एनसीपी को शिवसेना और कांग्रेस के साथ नहीं बल्कि भाजपा के साथ राज्य में सरकार बनानी चाहिए। हालांकि उनके इस प्रस्ताव को सभी से खारिज कर दिया था क्योंकि एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस की बातचीत आखिरी चरण में पहुंच गई थी। मुंबई और दिल्ली में भी कई दौर की बातचीत हो चुकी थी। अजित पवार और देवेंद्र फडणवीसअजित के सुझाव को बेशक उस समय शरद पवार और कई वरिष्ठ नेताओं ने खारिज कर दिया लेकिन खतरे को भांप नहीं पाए।
इसके एक हफ्ते बाद मुंबई में अजित ने बगावत करके पवार और अपनी पार्टी को आश्चर्यचकित कर दिया। पुणे की बैठक में एनसीपी नेतृत्व न केवल अजित के मन में चल रही बातों को समझने में नाकाम रही बल्कि बाद के संकेतों को भी नहीं पढ़ पाई। सूत्रों का कहना है कि शरद पवार के आवास पर हुई छोटी बैठकों में धनंजय मुंडे और सुनील तटकरे ने अजित जैसी राय रखी।
सूत्रों का कहना है कि देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के बीच पहली बार बात 10 नवंबर को हुई थी। इसके बाद दोनों नेताओं के बीच लगभग रोजाना बातें होती रहीं। कई बार तो एक दिन में दोनों कई बार बात किया करते थे।
दोनों नेता अच्छी तरह से जानते थे कि यदि उनके बीच हो रही बातचीत की किसी को भनक लगी तो पूरी योजना चौपट हो जाएगी। फडणवीस और अजित के बीच कुछ चल रहा है जानकारी केवल धनंजय मुंडे और सुनील तटकरे को थी। तटकरे अजित पवार के करीबी माने जाते हैं। वहीं मुंडे को इसलिए चुनाव इसलिए हुआ क्योंकि फडणवीस को उनपर भरोसा है।
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